न्याय का सफर: एक कविता संजीवनी
- Sloka Vineetha Chandra
- Apr 1
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- अंशिका अवस्थी
कानून की किताबों में छुपा सवाल
भारतीय न्याय का दरिया बेहद गहरा और विशाल
विधि के खेल में हर कदम बड़ा संघर्ष
दिलों में बेताबी अन्याय के खिलाफ खड़ा हर शख्स
आंसुओं की बूंद हो चाहे हक पानी की दरकार
न्याय की मजबूती झलकती दस्तकों में हर बार
सच्चाई की खोज में है अनगिनत किरदार यहां
अदालतों के दरवाजे खुलते अपनी धारा की गाते हैं महिमा
पुस्तकों के पन्नों में है इंसानियत की गौरव गाथा
न्यायपालिका का हर फैसला है दिलों को हिला जाता
वकीलों के दावपेंच, जजों की संवेदनशीलता
इंसानी भावनाओं को है बस इन्हीं का आसरा
हक का सफर है न्याय की राह
इस कविता में बसी है भारतीय कानून की चाह
गौरवान्वित है इतिहास हमारा, है न्याय की यहां अद्भुत परिभाषा
भले छूट जाए गुनहगार यहां पर बेगुनाह को बचाने की होती है अभिलाष
काश दिलों को छू जाए यह सच्चाई का गीत
भारतीय नायिका दीपक है आशा की है रीत
BACKGROUND INFORMATION
NAME OF THE POET: ANSHIKA AWASTHI
NAME OF THE POEM: न्याय का सफर: एक कविता संजीवनी
NAME OF THE COLLEGE: MAHARASHTRA NATIONAL LAW UNIVERSITY, AURANGABAD
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